एडॉप्शन से हम सबको जुड़ना है
सिनेमा, उपन्यास, घर मुहल्लों की बातों में गोद लेने के प्रकरण को एक बहुत ही नाटकीय अंदाज़ में पेश किया जाता रहा है. आश्चर्य नहीं है कि हमारे देश के पढ़े लिखे लोग भी एडॉप्शन को आज तक निस्संतान दम्पतियों के लिए अंतिम उपाय की तरह ही देखते हैं. फलस्वरूप, जब किसी को एक बच्चे गोद लेने की आवश्यकता पड़ती है तो वह उस्त्साहित होने के बजाय शंकाओं में घिर जाता है. अधिकतर लोगो का एडॉप्शन से प्रथम परिचय सिनमा के माध्यम से होता है. दुर्भाग्य से भारत में एडॉप्शन के विषय को ले कर बनी अधिकांश फिल्मों ने इस सन्दर्भ में लाभ से ज्यादा नुकसान किया है. भ्रांतियों के चलते लोग बच्चे तो गोद ले लेते हैं, किन्तु बाद में अनेकों मुश्किलों का सामना करते हैं. परिवार की खुशहाली के लिए आवश्यक है कि माता पिता गोद लेने की सारी प्रक्रिया को समझे और पूरी तैयारी के साथ ही पहला कदम रखें.
सलाह्-मशविरा गोद लेने की विधि का अभिन्न अंग है. एक प्रमाणित सलाहकार आपको एडॉप्शन से जुड़े अवसरों, आंकड़ों, चुनौतियों और परिवारों की जानकारी देता है. वह आपको मिथ्याओं से दूर करता है और तथ्यों के आधार पर आपका मार्गदर्शन करता है. सबसे अहम् बात तो यह है कि सही सलाह के चलते माता पिता को वह बच्चा खोजने में दिशा मिलती है जिसकी वे देखरेख कर सकते हैं, न कि ऐसा बच्चा जिसको वह बेहतर समझते हों या पसंद करते हो
ं.
हमारे सलाहकार भारत के 4 अलग महानगरों में स्थित हैं और हम नियमित रूप से अलग अलग शहरों में भी सलाह शिविर लगाते रहतें हैं. अपने आप को तैयार करने के लिए और अधिक जानकारी लेने के लिए, कृपया हमारे सलाह्करों से मुलाकात तय करें.